पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने चाईबासा में आदिवासियों पर किए गए लाठीचार्ज की कड़ी निंदा की, निर्दोष लोगों पर लाठी चार्ज करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग
श्री दर्पण न्यूज़, जमशेदपुर : कल देर रात, झारखंड की महागठबंधन सरकार ने चाईबासा में “नो एंट्री” की मांग लेकर आदिवासियों के आंदोलन को कुचलने की जिस प्रकार कोशिश की, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी। आखिर उन आदिवासियों का क्या कसूर था? उस क्षेत्र में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर वे दिन में भारी वाहनों के लिए नो एंट्री की मांग कर रहे थे। क्या उनकी यह मांग गलत है? क्या इस राज्य में लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से धरना प्रदर्शन का अधिकार नहीं है?
अमानवीय और शर्मनाक घटना
लेकिन सरकार द्वारा, जिस प्रकार उन आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई गईं और आंसू गैस के गोले छोड़े गए, वह ना सिर्फ अमानवीय, बल्कि शर्मनाक है। क्या सरकार को ऐसा लगता है कि इन हथकंडों से वो आदिवासी समाज को डरा सकती है?
पहले भोगनाडीह में वीर सिदो-कान्हू के वंशजों पर लाठी चार्ज, फिर गोड्डा में समाजसेवी सूर्या हांसदा का फर्जी एनकाउंटर, फिर नगड़ी में अपनी जमीन बचाने के लिए आंदोलनरत किसानों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस से हमला, और कल देर रात चाईबासा में आंदोलन कर रहे आदिवासियों पर लाठी चार्ज… ऐसा लगता है, मानो इस सरकार ने आदिवासियों को सबसे आसान टारगेट समझ रखा है।
फर्जी एफ आई आर दर्ज किए जाने की चम्पाई सोरेन ने निंदा की
इस के साथ-साथ, इनके विरोध में आवाज उठाने वालों के खिलाफ अनगिनत फर्जी एफआईआर, पुलिसिया प्रताड़ना, बेवजह जेल और ना जाने क्या-क्या… इतना सब कुछ, सिर्फ आदिवासियों एवं मूलवासियों की आवाज दबाने के लिए? क्या यही सब देखने के लिए अलग झारखंड राज्य बनाया गया था? इस आदिवासी विरोधी सरकार ने आदिवासियों को सिर्फ “अबुआ-अबुआ” नामक लॉलीपॉप दे रखा है, और जब कभी भी हमारा समाज अपने अधिकारों को लेकर आंदोलन करने का प्रयास करता है, उसे पूरी सख्ती के साथ कुचल दिया जाता है।
अंग्रेजी हुकूमत से भी बड़ी क्रुरता वरती गई
सन 1855 के हूल विद्रोह के बाद, कभी अंग्रेजों ने भी हमारे समाज पर हमले का साहस नहीं किया था, बल्कि उन्होंने हमें अलग संथाल परगना एवं एसपीटी एक्ट जैसे अधिकार दिए। लेकिन, इसके 170 साल बाद, झारखंड की इस तथाकथित अबुआ सरकार ने अपने पूर्वजों की पूजा करने का प्रयास कर रहे वीर सिदो कान्हू के वंशजों पर लाठी चार्ज करने का दुस्साहस किया।
सिरमटोली में इन्होंने जबरन केंद्रीय सरना स्थल पर “विकास के नाम पर” अतिक्रमण किया, जबकि अगर वे चाहते तो आसानी से उस रैंप को थोड़ा आगे या पीछे स्थानांतरित कर सकते थे। अब हर साल, सरहुल के अवसर पर, समाज इनकी जिद एवं तानाशाही का खामियाजा भुगतेगा।
आदिवासियों की जमीन की जबरन घेराबंदी
नगड़ी में इन्होंने जबरन आदिवासी-मूलवासी किसानों की खेतिहर जमीन पर बाड़ लगा कर उसे घेर लिया, और जब हमने विरोध किया तो मुझे हाउस अरेस्ट किया गया, हजारों आंदोलनकारियों को जहां-तहां रोका गया, किसानों पर लाठी चार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले छोड़े गए, ताकि उनकी जमीन छीनी जा सके। लेकिन, अंततः इस सरकार को झुकना पड़ा। पिछले महीने, इस सरकार ने चाईबासा में हमारे समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, जिसके विरोध में हजारों मानकी मुंडा सड़कों पर प्रदर्शन करने उतरे, लेकिन संबंधित अधिकारी अपने पद पर बने रहे।
2 दिन पहले पांच बच्चों को संक्रमित रक्त चढ़ाकर किया गया जीवन बर्बाद
इसी चाईबासा में, पांच बच्चों को संक्रमित रक्त चढ़ा कर, उनका जीवन इस सरकार ने बर्बाद कर दिया, और इस “अपराध” की कीमत 2 लाख लगाई गई। उसमें में अधिकतर बच्चे आदिवासी समुदाय के हैं। लेकिन इन्हें शर्म नहीं आती।
राज्य सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ राज्य की जनता एकजुट
इस आदिवासी-मूलवासी विरोधी सरकार के इस दमनकारी रवैये के खिलाफ अब राज्य की जनता एकजुट हो रही है। जब कभी भी, राज्य में आदिवासियों एवं मूलवासियों पर अत्याचार होगा, उनके अधिकारों को छीनने का प्रयास होगा, मैं उसके खिलाफ खड़ा रहूंगा।
