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पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने अपने पैतृक गांव झिलिंगगोंडा में परम्परागत धार्मिक रीति-रिवाज के साथ मनाया बाहा पर्व, आदिवासी मान्यताओं के अनुरुप वेशभूषा में जाहेरथान पहुंचकर की प्रकृति देवता की पूजा-अर्चना

श्री दर्पण न्यूज, जमशेदपुर : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह सरायकेला के विधायक चम्पाई सोरेन ने बुधवार को पैतृक गांव झिलिंगगोंडा में परम्परागत धार्मिक रीति-रिवाज के साथ बाहा पर्व मनाया और आदिवासी मान्यताओं के अनुरुप वेशभूषा में जाहेरथान पहुंचकर प्रकृति देवता की पूजा-अर्चना की. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में बच्चियां, किशोरियों, युवतियों व महिलाओं ने एक समान वस्त्र धारण कर जनजातीय परम्परा के अनुरुप नृत्य-गान किया. नगाड़ों व तासों के साथ झाल की आवाजों ने इस समारोह को और भी उत्साह से भर दिया. इस पर्व में प्रकृति के देवता बाहा-बोंगा की जाहेरस्थान में पूजा की जाती है.

आदिवासी समाज अपने सृष्टिकर्ता की करते हैं वंदना

मान्यताओं के अनुसार बाहा-बोंगा को सखुआ फूल चढाने का काफी महत्व होता है. इस मौके पर साल वृक्ष की भी पूजा की जाती है. समाज के लोग साल का फूल अपने काम के उपर लगाते हैं और बाहा-बोंगा से समाज व देश की रक्षा की कामना करते हैं. इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि बाहा पर्व आदिवासी समाज का एक पवित्र पर्व है जिसमें समुदाय के लोग अपने सृष्टिकर्ता और प्रकृति के देवता मरांगबुरू, जाहेर आयो, लिटा मोणें और तुरूईको के प्रति श्रद्धा और आभार प्रकट करते हैं. इस पर्व में नायके बाबा और माझी बाबा के मार्गदर्शन में पूजा-अर्चना की जाती है. सारजोम बाहा (सखुआ फूल) और मातकोम गेल (महुआ फूल) देवी-देवताओं को अर्पित किए जाते हैं.

यह पूजा आदिवासी समाज की विरासत को सहेजने का प्रतीक 

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि बाहा पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामुदायिक सहयोग, प्राकृतिक और सांस्कृतिक संतुलन की विरासत को सहेजने का प्रतीक है. बताते चलें कि पूर्व मुख्यमंत्री पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ाते हुये अपने पैतृक गवां झिलिंगगोड़ा में बड़े पैमाने पर इस पर्व का आयोजन करते हैं. उन्होंने स्वंय बताया कि दादा-माता-पिता भी इसी अनुरुप बाहा पर्व को अनुष्ठान के रुप में आयोजित करते रहे हैं. इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम में सभी उम्र वर्गो की महिला और पुरुष नृत्य व वाद्य में भाग लेते हैं. अंत में जाहेरस्थान से वे लोग नाचगान करते हुये कतारवद्ध होकर अपने मुख्य द्वार तक पहुंचते हैं. जहां सभी के लिये आदिवासी परम्परा के मुताविक प्रसाद की व्यवस्था की जाती है. इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन अपने, परिवार बेटों व पोतो-पोतियों के साथ काफी खुश नजर आये. जिसका उन्होंने बड़े उत्साह के साथ परिचय भी कराया.

 

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