राजनीति से सन्यास लेना क्यों चाहते हैं चक्रधरपुर विधायक सुखराम उरांव, जानते हैं उनका दर्द
श्री दर्पण न्यूज, जमशेदपुर : ( राम मिश्रा से खास बातचीत ) विधायक सुखराम उरांव चक्रधरपुर में काफी लोकप्रिय हैं. गरीब और पीड़ित असहाय, निर्वल लोगों की हर हमेशा सुख-दुख में साथ देने वाले विधायक सुखराम उरांव का स्थानीय लोग बहुत आदर करते हैं. उनका सम्मान करते हैं. कोई भी व्यक्ति भले ही वह उनके विधानसभा क्षेत्र का ना भी हो अपनी समस्या को लेकर उनके पास जा सकता है और वे उसकी हर संभव मदद करते हैं. पारदर्शी व्यक्तित्व वाले सुखराम उरांव की पहचान भी एक उदार और भावनात्मक लगाव वाले नेता के रूप में रही है. वे मानवमूल्यों को ज्यादा महत्व देते हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के साथ भी काम किया
मैं उन्हें उन दिनों से जानता हूं जब उनकी उम्र काफी छोटी थी और वे कांग्रेस के तत्कालीन जिला अध्यक्ष विजय सिंह सोय के साथ रहा करते थे. बाद में वे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के पहली बार विधायक बनने के दौरान सहयोगी भी रहे और उनके लिए काम भी किया. अर्जुन मुंडा उनका बहुत सम्मान करते हैं. समय परिवर्तन के साथ-साथ विचार और सिद्धांत भी बदलते हैं. इसी क्रम में सुखराम उरांव झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े और पहली बार 2009 में विधायक बने . 2014 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. 2019 और 2024 में पुन: विधायक बने.
राजनीति से सन्यास लेना क्यों चाहते हैं ?
लंबे अंतराल के बाद उनसे मुलाकात हुई और पुरानी यादों को ताजा भी किया. शुरू से ही एक खुले विचार वाले सुखराम उरांव आज राजनीति से सन्यास लेने की बात कहते हैं. जमशेदपुर के सर्किट हाउस में बातचीत करते हुये सुखराम उरांव ने कहा कि वर्तमान परिपेक्ष में राजनीति में अपने को समायोजित नहीं कर पा रहे हैं. आज की राजनीति बिकाऊ और गलत सोच वाली हो गई है. नेता कब क्या बोलेंगे और अपनी बातों से मुकर जायेंगे, कहा नहीं जा सकता. जबकि उनके विचार में यह सब नहीं है. वे खुले व्यक्तिव के इंसान हैं. पारदर्शिता को आत्मसात कर चलने वाले हैं. जिसकी वजह से वह अपने को एडजस्ट नहीं कर पाते हैं यह कहे जाने पर की राजनीति तो समाज सेवा का एक माध्यम है. आज वे विधायक हैं. लोगों की सुनते हैं और यथासंभव मदद भी करते हैं. इसलिए उन्हें राजनीति से संन्यास नहीं लेना चाहिए. वे युवा हैं. विधायक सुखराम उरांव चुप हो जाते हैं और कहते हैं कि देखा जायेगा.
समाजिक कार्यों में गहरी रुची रही है सुखराम की
उल्लेखनीय है कि अपने आरंभिक राजनीतिक दिनों की शुरुआत के साथ सुखराम उरांव समाज सेवा से जुड़ गए. लोगों की मदद करना लोगों के सुख-दुख में शामिल होना उनकी नियति है. आज के समय में ऐसे कम नेता होंगे जो नाममात्र के चुनाव प्रचार में विधायक बन जाते हैं. बातचीत में सुखराम उरांव ने स्वीकार किया कि वे पर्चा दाखिल करने के बाद प्रचार प्रसार भी करने नहीं जाते हैं. बावजूद इसके उन्हें लोगों का अपार स्नेह और समर्थन मिलता है. चक्रधरपुर क्षेत्र में गरीब और जरूरतमंद बच्चों के बीच पाठ्य पुस्तकों का वितरण , स्कूल ड्रेस, खेलने के लिए फुटबॉल हो या आधारभूत मूलभूत जरूरत के समान हो, विधायक सुखराम उरांव अपने स्तर से ऐसे लोगों की मदद करते हैं. उनके पिता लट्टू उरांव भी समाजसेवी थे.
लट्टू उरांव फुटबॉल प्रतियोगिता के आयोजन ने भी सुखराम उरांव को काफी पॉपुलर बनाया
अपने जमाने में लाठी भजने में उनका कोई सानी नहीं था. लाठी भांजते समय कोई पथराव भी कर तो शायद पत्थर उनको ना लगे. आज बातचीत के दौरान सुखराम उरांव ने अपने पिता को याद किया और कहा कि पिता का खून उनमें प्रवाहित होता है और वे पिता की तरह समाज सेवा और उनके विचारों से सहमति रखते हैं. पिछले 25 वर्षो से चक्रधरपुर में वे अपने पिता लट्टू राव के नाम से अन्तर्राज्जीय फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन करते आ रहे हैं. झारखंड और पड़ोसी राज्यों की टीमें भी इस फुटबाल टूर्नामेंट में हिस्सा लेती है. विजेता टीमों को भारी भरकम पुरस्कार राशि दी जाती है. लट्टू उरांव प्रतियोगिता के आयोजन ने भी सुखराम उरांव को काफी पॉपुलर बनाया है.